भारतीय आहार विश्लेषण रिपोर्ट: पापी पेट की पूजा और स्वास्थ्य जागरूकता
भारतीय आहार विश्लेषण रिपोर्ट: पेट एक अद्भुत चीज है। यह कभी पापी होता है, तो कभी पूजनीय। इसलिए, पापी पेट का सवाल हमेशा बना रहता है। रोजाना कई बार पेट की पूजा की जाती है। भूखे रहकर भजन भी नहीं गा पाते। यह सच है। पेट जो न करवा दे। पेट की अहमियत अनमोल है। ईश्वर को प्रसन्न करने का एक साधन भी पेट ही है। रोज़े और उपवास का उद्देश्य भी यही है कि खाली पेट की कठिन तपस्या का संदेश ऊपर तक पहुंच सके।
कुल मिलाकर, यह जरूरी है कि पेट भरा रहे। तभी पापी पेट का सवाल हल होता है और पेट ‘देव’ की पूजा पूरी होती है। हमारा शरीर, जो एक इंजन की तरह है, पेट में मौजूद ईंधन से चलता है, इसलिए हमें दाना-पानी देते रहना चाहिए। हम सब यही कर रहे हैं, चाहे घर में हो या बाहर, ठेलों से लेकर रेस्टोरेंट तक।
हम एक प्राचीन ज्ञान वाले देश हैं। हमारा भोजन अद्वितीय है। एक से बढ़कर एक व्यंजन। हमारी बराबरी कोई नहीं कर सकता। इसलिए, चाहे हम किसी भी देश में जाएं, हम अपने देश का खाना ही खोजते हैं। अब तो विदेशी भी भारतीय थाली के दीवाने हो चुके हैं। पेट की पूजा में हमारी कोई टक्कर नहीं है। हम घर से लेकर सड़क तक पूजा में लगे हैं।
लेकिन एक बड़ी समस्या है। पेट की पूजा का फल उल्टा ही मिल रहा है। ऐसा लगता है कि भोजन के रूप में मिलने वाला ईंधन पेट देवता को नाराज कर रहा है। न केवल शरीर का माइलेज घट रहा है, बल्कि पूरी बॉडी का बैंड बज रहा है।
पेट की पूजा हो रही है, लेकिन इसके परिणाम बीमारियों के रूप में सामने आ रहे हैं। यह स्थिति अस्पतालों, क्लीनिकों और घरों में स्पष्ट है। पेट के रोग अब हर घर में हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार, देश की 18% आबादी पेट के रोगों से ग्रसित है। भारत में लगभग 7 से 9 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। हर दशक में यह आंकड़ा 50 से 70% तक बढ़ता है।
इसका मुख्य कारण पेट पूजा में नहीं, बल्कि पेट पूजा की सामग्री में है। यह बात भारत की सबसे बड़ी मेडिकल रिसर्च संस्था, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कही है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि हम भारतीय पेट पूजा में 62% कार्बोहाइड्रेट का चढ़ावा चढ़ा रहे हैं। यही हमारी समस्या का मुख्य कारण है। ये कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से रोटी, चावल और चीनी के माध्यम से आ रहा है।
अध्ययन के अनुसार, हमारे खानपान में कार्बोहाइड्रेट की भरपूर मात्रा है, जबकि प्रोटीन की मात्रा केवल 12% है। प्रोटीन का मुख्य स्रोत दाल है, लेकिन दाल का सेवन भी बहुत कम होता है।
प्रोटीन के अन्य स्रोत जैसे दूध, पनीर और अंडा-मांस का सेवन भी बहुत कम है। यह जान लें कि हम डेयरी से औसतन 2% और एनिमल प्रोटीन से केवल 1% प्रोटीन प्राप्त कर रहे हैं। पेट पूजा में यह असंतुलन बीमारियों का सबसे बड़ा कारण बन रहा है। हमारी डाइट का बड़ा हिस्सा सफेद चावल और गेहूं के आटे से आता है, और जितना अधिक कार्बोहाइड्रेट, उतनी अधिक डायबिटीज़ का खतरा।
बात यहीं खत्म नहीं होती। कार्बोहाइड्रेट के अलावा एक और तत्व है, जिसे फैट कहते हैं। घी, मक्खन और तेल वाला फैट भी खूब खाया जाता है। फैट जरूरी है, लेकिन सवाल यह है कि हम किस प्रकार का फैट ले रहे हैं। जो फैट हम ले रहे हैं, वह सेहत में सुधार करने के बजाय कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग को बढ़ा रहा है।
हमें मेवे, बीज और मछली से निकले मोनोअनसैचुरेटेड और ओमेगा-3 फैट का सेवन करना चाहिए, लेकिन कितने लोग इसे नियमित रूप से लेते हैं?
अब जान लें कि थाली में मौजूद हाई कार्बोहाइड्रेट और खराब फैट क्या-क्या समस्याएं पैदा कर रहे हैं। लेकिन हम क्या करें? कहना आसान है कि खूब दाल, पनीर, मेवा, दूध, दही, और अच्छे तेल का सेवन करें, लेकिन यह सब कहां से लाएं?
सार्वजनिक जागरूकता की बात करें तो मुफ्त राशन में भी वही गेहूं और चावल मिलते हैं। मिड डे मील से लेकर भंडारों और लंगरों में भी यही हाल है। ठेलों पर वही मैदे की भरमार है।
खैर, जिस तरह हम एक बेहद बीमार देश में तब्दील हो गए हैं, उसमें ऐसी स्टडी की बातें गंभीर हैं। लेकिन क्या करें? डाइट की आदतें बदलना आसान नहीं है। इसके लिए लंबा रास्ता तय करना होगा। जेब की पहुंच में उपलब्धता होना एक बड़ा चैलेंज है। फिर भी, कोशिश तो करनी ही होगी। या तो अच्छे खाने पर खर्च करें या डॉक्टर, जांच और इलाज पर। यह निर्णय हमें खुद लेना है। हमें जागरूक होना होगा। अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में सोचना होगा। पापी पेट का सवाल हल करते रहिए, लेकिन पेट पूजा का तरीका बदलना जरूरी है।
(लेखक पत्रकार हैं।)
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